खरगोन, मध्यप्रदेश: निमाड़ क्षेत्र के सुप्रसिद्ध संत सियाराम बाबा ने मोक्षदा एकादशी के शुभ अवसर पर बुधवार सुबह इस लोक से महाप्रयाण कर लिया। बाबा की आयु 100 से अधिक थी और वे पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। उनके निधन की खबर से भक्तों में शोक की लहर दौड़ गई और बड़ी संख्या में लोग उनके भट्यान स्थित आश्रम पहुंचने लगे।
बाबा के अंतिम संस्कार की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। उनका डोला दोपहर 3 बजे निकलेगा और शाम को नर्मदा नदी किनारे, उनके आश्रम के समीप चंदन की लकड़ियों पर उनकी अंत्येष्टि संपन्न होगी।
स्वस्थ्य के लिए चल रहे थे जाप और भजन
बीते तीन दिनों से बाबा के स्वास्थ्य में गिरावट आने के कारण भक्त उनके लिए जाप और भजन कर रहे थे। उन्हें निमोनिया हो गया था, लेकिन अस्पताल के बजाय उन्होंने अपने आश्रम में रहकर भक्तों से मिलने की इच्छा जताई। मुख्यमंत्री मोहन यादव के निर्देश पर डॉक्टरों की टीम उनकी स्थिति पर निगरानी रख रही थी।
12 वर्षों का मौन व्रत और नर्मदा किनारे तपस्या
सियाराम बाबा का जीवन आध्यात्मिक साधना और सेवा का प्रतीक था। उन्होंने नर्मदा नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे तपस्या की और 12 वर्षों तक मौन व्रत धारण किया। मौन तोड़ने के बाद उनका पहला शब्द “सियाराम” था, जिसके बाद भक्त उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे।
सादगी और सेवा के प्रतीक
बाबा अत्यंत सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। वे केवल 10 रुपये का दान स्वीकार करते थे और उसे भी आश्रम से जुड़े कार्यों में लगाते थे। उनकी सादगी और सेवा भावना ने उन्हें लाखों लोगों का प्रिय बना दिया। हर महीने हजारों भक्त उनके आश्रम में दर्शन के लिए आते थे।
आध्यात्मिक विरासत
सियाराम बाबा ने अपने जीवन के माध्यम से न केवल भक्तों को सेवा और साधना का महत्व सिखाया बल्कि सादगी, त्याग और प्रेम का उदाहरण भी प्रस्तुत किया। उनके अनुयायियों के लिए यह क्षति अपूरणीय है, लेकिन उनकी शिक्षाएं और आध्यात्मिक ऊर्जा सदैव मार्गदर्शन करती रहेंगी।
निष्कर्ष: सियाराम बाबा का जीवन प्रेरणा का स्रोत था और उनका महाप्रयाण उनके अनुयायियों के लिए गहन शोक का विषय है। नर्मदा के पवित्र तट पर उनका अंतिम संस्कार उन्हें अनंत शांति की ओर ले जाएगा।